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महाप्रयाण भाग-16 “सहायता”

21/12/2016

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रात्रि का दूसरा पहर समाप्त हो चुका था और तीसरा पहर आरंभ हो रहा था । उपसेनापति कुशाग्र के नेतृत्व में सेना, मैदानी क्षेत्र को पार करके वितस्ता के सहारे-सहारे हरितभूमि राज्य के पहले उस वन्य क्षेत्र तक पहुंच चुकी थी , जिसके बारे में सेनापति ने कहा था। अमावस्या की उस रात में हजारों मशालों की रोशनी दिव्या आभास दे रही थी और निकट में बांध से वितस्ता की विशाल जल राशि को वहां की नम वायु से बिना देखे अनुभव किया जा सकता था।

    कुशाग्र ने सभी को वहां रुकने का आदेश दे दिया। सहायता कहां से और कैसे आने वाली थी किसी को कोई अनुमान न था ? कुछ समय तक कहीं कोई हलचल ना हुई , सारी सेना स्तब्ध खड़ी थी । वन्य जीवों के अतिरिक्त कहीं कोई आवाज नहीं आ रही थी।
तभी एक सैनिक ने उपसेनापति से आकर कहा, “महाराज! वितस्ता के जल में कुछ हलचल हो रही है।”

कुशाग्र ने नदी तट पर निकट जाकर देखा , जल हिलने लगा था, क्या हो रहा था ? कुछ पता न था ?

कुछ देर पश्चात दूर उत्तर की ओर नदी में जल से कुछ ऊपर की ओर ढेर सारी मशालें दिखाई देने लगी।

“यह क्या है? क्या यही सहायता है ? ”

वे मशालें तेज़ी से निकट आने लगी और निकट आने पर स्पष्ट हुआ , जल में बहुत से विशाल जहाज तेजी से इस ओर आ रहे थे।

सचमुच विशाल ! कल्पना से परे ! सहायता आ चुकी थी ।

कुशाग्र की मति तीव्रता से समय में पीछे दौड़ी और उसे छः माह पूर्व सेनापति के राज्य से गायब होने और उत्तर की ओर जाने की बात समझ में आई ।
“तो सेनापति काफी समय से इन जहाजों को हरितभूमि राज्य में बनवा रहे थे और हरितभूमि राज्य से बात करने के लिए ही वहां गए थे ।”

जहाजों ने कुछ ही समय में बिना किसी बाधा के समस्त सेना को उनके अश्व तथा रथों समेत उस पार उतार दिया । अमावस्या के उस अंधकार में वे जहाज जहां से आए थे वहीं विलीन हो गए , यह किसी चमत्कार से कम न था।

जिस समय सेना पार उतर रही थी, ठीक उसी समय रात्रि के तीसरे पहर में षटकुल के महल में एक गुप्त कक्ष में वहां का राजा शतादित्य , सेनापति और दो अधिकारी खड़े थे । एक गुप्तचर अभी-अभी उत्तर से आया था ।
“क्या सूचना है” सेनापति ने पूछा।
“महाराज हरितभूमि पर आक्रमण की सूचना पहले ही आपके पास पहुंच चुकी है । अब सूचना यह है कि विराटनगर की पच्चीस हजार की सेना सचमुच हरितभूमि जा रही है ।”

“तुम स्पष्ट रुप से ऐसा कैसे कह सकते हो , कहीं वह सेना पलटकर ना आ जाए” , सेनापति ने कहा ।

“असंभव है। यदि पलटकर भी आ जाएगी तो कल शाम से पहले वापस नहीं पहुंचेगी और इधर आने के लिए उन्हें वितस्ता भी तो पार करनी पड़ेगी।”

“कहीं वे वहीं से वितस्ता ना पार कर लें” , शतादित्य बोला ।

“यह भी संभव नहीं है महाराज! बांध निकल जाने के बाद भी बहुत दूर तक मैंने उनका पीछा किया , यह सुनिश्चित करने के लिए कि कहीं वे लौट ना आए, लेकिन वे तो बहुत आगे निकल गए । वहां से वितस्ता को पार करना मृत्यु को निमंत्रण देना है । आधे डूब के मर जाएंगे और आधे मगरमच्छों का भोजन बन जाएंगे। वे लोग ऐसी मूर्खता नहीं कर सकते ।

“हम्म ! तब तो उनकी सेना हमसे कम पड़ गई है” ,कहीं ऐसा ना हो कि वे युद्ध ही टाल दें” , सेनापति ने शंका व्यक्त की ।

“ऐसा भी नहीं होगा महाराज! क्योंकि वहां के राजज्योतिषी ने ही यह तिथि निश्चित की है और इस तिथि के बाद उनकी विजय सुनिश्चित करने वाली कोई तिथि नहीं है, इसीलिए वे युद्ध करेंगे और अवश्य करेंगे” ,  गुप्तचर ने स्पष्ट किया।

शतादित्य ने अट्टहास किया , “तब तो वे यहां आकर काल का ग्रास ही बनेंगे क्योंकि हमारी सेना युद्ध भूमि में तैयार खड़ी है । चूँकि उनकी सेना की संख्या अब हमसे कम हो चुकी है इसलिए वह रुद्रदेव अपना नायकत्व सिद्ध करने के लिए सेना में सबसे पहले आएगा, हमें केवल उसे समाप्त करना है, सारा विराटनगर यूँही समाप्त हो जाएगा”, उसने पुनः अट्टाहास किया।

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आगामी भाग में पढ़ें- क्या सचमुच युद्ध होगा ? क्या षटकुल , सेनापति रुद्रदेव को समाप्त कर पायेगा ?
जानने के लिये पढ़ते रहें “महाप्रयाण”

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आगामी भाग दिनांक 25.12.2016 को प्रकाशित किया जाएगा।
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