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महाप्रयाण भाग २ "सीमांकन"

2/11/2016

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                    विराटनगर अपने नाम अनुरूप ही एक विराट साम्राज्य था जो अपनी समृद्धि और सुरम्यता के लिए प्रसिद्ध था। उसके वन , जलसंपदा, उपजाऊ भूमि आदि सभी किसी भी अन्य राज्य के लिए ईर्ष्या का कारण बनने को पर्याप्त थे। 
                    विराटनगर का उत्तरी भाग विशाल पर्वत श्रृंखला से आच्छादित था , जिसकी तलहटी में हरितभूमि राज्य था , ऊपरी पर्वत श्रृंखला से वितस्ता नदी निकलती थी जो विराटनगर से होती हुई आगे दक्षिण तक जाती थी। हरितभूमि के निचले भाग में एक  वृहद वन क्षेत्र था । पूर्व में विराट नगर की सीमा शैलक्षेत्र से राज्य से साझी थी, शैलक्षेत्र के राजा के साथ विराटनगर के मैत्रीपूर्ण संबंध थे और सीमा पर कोई प्राकृतिक बाधा न होने के कारण दोनों राज्यों में व्यापार विनिमय और आवागमन सुगम था।  दक्षिणी सीमा की ओर चलते-चलते एक विशाल मरुस्थल प्रारंभ हो जाता था जो आगे जाते-जाते दूसरे राज्य तैलंग की सीमा में भी फैला हुआ था । उत्तरी सीमा पर विस्तृत वन क्षेत्र और दक्षिणी सीमा पर मरुस्थल होने से इन दो सीमाओं से विराटनगर को कोई भय न था और यही इन राज्यों का प्राकृतिक बंटवारा भी था,  पूर्वी सीमा के राज्य शैलक्षेत्र के साथ विराटनगर के मैत्रीपूर्ण संबंध थे ही किंतु यदि विराटनगर को अपनी किसी सीमा पर भय था तो वह थी उसकी पश्चिमी सीमा ।
                वैसे तो पश्चिमी सीमा पर भी प्राकृतिक बंटवारा था, वहां एक विशाल चौड़े पाट वाली वितस्ता नदी बहती थी जिसके दूसरी ओर षटकुल राज्य की सीमा थी।  नदी के पानी आदि सभी बातों को लेकर दोनों राज्यों में व्यापक समझौते किए गए थे , जिनका पालन विराटनगर की ओर से पूर्णतया किया जाता था किंतु षटकुलके राजा की महत्वाकांक्षा बलवती हो कर कभी-कभी सारे समझौतों का अतिक्रमण कर जाती थी।  उनकी सेना वितस्ता पार करके इस ओर के ग्रामों में आतंक मचाती रहती थी , जिस पर ध्यान आकर्षण के लिए सेनापति रुद्रदेव ने राजसभा का आह्वान किया था ।  केवल यही एक सीमा ऐसी थी जिसकी ओर से विराटनगर को आक्रमण का भय था , अन्यथा वह एक खुशहाल राज्य था।

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आगामी भाग में पढ़िए - क्या उपकार किये थे रुद्रदेव ने विराटनगर और महाराज कीर्तिवर्धन पर और कैसा है सेनापति रुद्रदेव का युद्धकौशल?
अगला भाग प्रकाशित होगा दिनांक 06/11/2016 को................
अपने सुझावों से अवश्य अवगत कराते रहें।
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