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महाप्रयाण भाग-7 “वेदना”

20/11/2016

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       कुछ घंटों की यात्रा के बाद उन्हें कुछ दूरी पर धर्मग्राम दिखाई पड़ने लगा। आकाश में गहरे काले बादलों की आवाजाही थी, तेज हवाएं भी चल रही थीं। विराट नगर का संकट मौसम में भी परिलक्षित होने लगा था। गांव से धुंआ उठता हुआ दिखाई दे रहा था, तात्पर्य था कि कहीं आग लगाई गई थी।
      गांव के निकट पहुँचने पर गांव के प्रवेश मार्ग पर ही एक वृद्ध पुरुष और उसके साथ दो-चार जन खड़े थे। वह वृद्ध व्यक्ति ग्राम प्रमुख था। वे प्रवेश मार्ग पर इसी आशा से खड़े थे कि शीघ्र ही कोई सहायता आती होगी। महाराज तत्काल रथ से उतरकर वृद्ध के पास गए और उसका हाथ पकड़कर उसे सांत्वना देने का प्रयास किया। महाराज ने जैसे ही उसका हाथ पकड़ा मानो उसके धैर्य का बांध टूट गया और वह फफक- फफक कर रो पड़ा। जो पूरे ग्राम की भावनाओं का भार अपने कंधों पर लिए सहायता के लिए राह निहार रहा था, स्वयं महाराज को देख अपने अश्रुओं का संवरण न कर सका।

“बहुत देर कर दी महाराज आने में, सब कुछ समाप्त हो गया” वह करुण स्वर में बोला।

“धैर्य रखिए बाबा यदि आप अपने आपको नहीं संभालेंगे तो शेष ग्रामवासियों का क्या होगा”

“शेष में अब कोई नहीं बचा महाराज! दुष्टों ने बूढ़े,बच्चे, महिलाओं किसी को भी नहीं छोड़ा। केवल हम यातनाएं भुगतने के लिए जीवित हैं। ऐसा क्यों हुआ महाराज! आखिर क्या अपराध था हमारा जो ईश्वर ने हमें यह दंड दिया” कहते-कहते उसका गला रुंध गया।

“धैर्य रखिए अब मैं आ गया हूं, मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा।” महाराज के पास इनके अतिरिक्त कोई शब्द न थे।
इतना कहकर महाराज पैदल ही ग्राम में आगे बढ़ गए। सभी लोग उनके साथ हो लिए। सैनिक बचाव कार्यों में लग गए। साथ में रथों पर लाया गया अन्नादि बांटा जाने लगा। कुछ दूरी पर एक घर जलता हुआ दिखाई दिया। एक पुरुष उसके चारों ओर पागलों की तरह दौड़ रहा था। उसके दोनों हाथ जले हुए थे,सैनिकों को स्थिति समझते देर न लगी। कुछ ने उस व्यक्ति को पकड़कर एक स्थान पर बिठाया, कुछ पानी के लिए दौड़े और उस मकान पर पानी डालकर उसे बुझाने का प्रयास किया। उन जलती बुझती लपटों के बीच चार सुप्रशिक्षित सैनिक उस घर में घुस गए। कुछ क्षणों पश्चात एक महिला व दो बच्चों के शव हाथ में उठाए वे  वापस लौट। सेनापति की आँखों में अपने सैनिकों के लिए प्रशंसा का भाव था। वह पुरुष अपनी पत्नी व दोनों बच्चों के शव के पास दहाड़े मारकर रोने लगा। शवों की स्थिति ऐसी थी कि उन्हें पहचानना तक दूभर था।

वह पुरुष घुटनों पर बैठकर आकाश की ओर मुंह करके अश्रु भरी आँखों से ईश्वर से प्रश्न पूछने लगा, तभी आकाश में बादलों ने जोर की गड़गड़ाहट की और वर्षा प्रारंभ हो गई। मानो भगवान भी उनके दुख से दुखी होकर रुदन करने लगे थे । महाराज, सेनापती व अन्य, कोई भी द्रवित हुए बिना न रहे किंतु सभी ने उस वर्षा में अपने अश्रुओं को छिपा लिया। अब वर्षा आनंद का विषय नहीं रहा था।

         आसपास के दो और ग्रामों में भी यही स्थिति थी। गांव के मार्गों पर घोड़े दौड़ा-दौड़ाकर  तलवारो से लोगों को काट दिया गया था। घरों को जला दिया गया था, खेतों में अनाज को आग लगा दी गई थी। यत्र-तत्र शव पड़े दिख रहे थे। ऐसा विभत्स दृश्य तो महाराज ने किसी युद्ध में भी नहीं देखा था।
     वापसी में सैनिकों को वहीं छोड़कर वे लोग लौट आए थे। किन्तु मार्ग में कोई किसी से नहीं बोला , इस दुख को व्यक्त करने के लिए शब्दों की सीमा समाप्त हो चुकी थी।

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आगामी भाग में पढ़ें- इस जनसंहार का क्या प्रभाव हुआ महाराज पर और अब क्या योजना होगी आगे की ?

कथा को इतना प्रेम और प्रशंसा देने के लिये हम आपके हृदय से आभारी हैं। आशा है “महाप्रयाण” में बनी रोचकता आपको पसंद आती रहेगी। कृपया हमसे जुड़े रहें, अपने सुझाव व विचारों से हमें अवगत कराते रहें और पढ़ते रहें। आगामी भाग दिनांक 23.11.2016 को प्रकाशित किया जाएगा।
धन्यवाद





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