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आज दिन भर के घटनाक्रम के बाद सेनापति रुद्रदेव को नींद नहीं आ रही थी। वे अपनी शय्या पर पड़े पड़े निरंतर एक टक छत को देख रहे थे। अनेक विचार उनके मस्तिष्क में घूम रहे थे। उन्होंने जब से होश संभाला था, रक्तपात और मांस के लोथड़े के अतिरिक्त कुछ नहीं देखा था इसलिए यह बातें उन्हें इतना व्यथित नहीं करती थीं किंतु जो कुछ आज धर्मग्राम में हुआ, उसने उनके ह्रदय को झकझोर दिया था । वीभत्सता का ऐसा नंगा नाच , छोटे-छोटे बच्चों को, महिलाओं को तलवारों से काट देना कहां की वीरता है । उनकी मुट्ठी अपने आप भिंच गई और माथे पर पसीना छलछला आया । “मनुष्य इतना दुष्ट कैसे हो सकता है, आज यदि महाराज आज्ञा दें तो मैं षटकुल का नाम संसार के मानचित्र से सदा के लिए मिटा दूं परंतु महाराज तो वहां से आने के बाद एक शब्द नहीं बोले, पता नहीं उनके मन में क्या चल रहा है” यही बातें सोचते-सोचते न जाने कब उनकी आंख लग गई। अचानक द्वार पर हुई दस्तक से उनकी नींद खुली शय्या से ही खिड़की के बाहर देखा तो भोर का प्रकाश फैला हुआ था । आज उन्हें उठने में विलंब हो गया था किंतु इतनी सुबह-सुबह यह कौन आ गया । “कौन” “मैं द्वार प्रहरी , महाराज ने आपको स्मरण किया है तत्काल उनके निवास पर उपस्थित होने की आज्ञा की है” “ठीक है मैं आता हूं ।इतनी सुबह महाराज ने क्यों स्मरण किया ऐसा क्या हो गया।” वे तत्काल अपनी शय्या से निकले और नित्यकर्म की ओर बढ़ चले । कुछ समय पश्चात वे महाराज के निवास पर उपस्थित थे। महाराज अपने नियत स्थान पर बैठे थे, उनके अतिरिक्त उपसेनापति कुशाग्र, दक्षिण सेनाप्रमुख सुदीप, वाम सेनाप्रमुख अरिंदम, अश्वपति बाहुक आदि अन्य सेनाधिकारी भी बैठे थे। सभी अधिकारियों ने उनके पहुंचते ही अपने स्थान से खड़े होकर उनका अभिवादन किया । सभी को आज सुबह ही उपस्थित होने के लिए सुचना प्राप्त हुई थी। सेनापति सभी के अभिवादन का उत्तर देते हुए चलते-चलते महाराज के निकट अपने आसन पर जाकर बैठ गए। अनिश्चितता के भाव अभी भी उनके मुख पर थे । “कल रात भर मुझे नींद नहीं आई , मैं रात भर जागकर विचार करता रहा ” महाराज ने अपनी बात आरंभ की। “हम में से लगभग सभी अधिकारी कल धर्मग्राम में थे, जो कुछ वहाँ हुआ उसकी कल्पना कदाचित सेनापति को होगी किंतु वह इतना वीभत्स होगा इसकी कल्पना तो स्वप्न में भी नहीं की जा सकती थी। इस घटना की सुचना जैसे फैलेगी राज्य के अन्य क्षेत्र के नागरिकों में और संसार भर में विराटनगर के सम्मान में कमी आएगी। षटकुल ने जो किया वह योद्धाओं को शोभा देने वाला नहीं है,उन पशुओं को अपनी करनी का कोई शोक भी नहीं होगा ऐसा मैं सोचता हूं। इससे पहले कि वे पशु अपनी करनी में और नीचे गिरें, उन्हें दंड देना आवश्यक है। उन पशुओं को मनुष्यों के इस समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं। अतः मैं षटकुल से निर्णायक युद्ध का पक्षधर हूं” महाराज ने अंतिम वाक्य पूरे जोश के साथ कहा। सेनापति रुद्रदेव के मुख पर मुस्कान लौट आई और उन्होंने जोर से महाराज का जय-जयकार किया और सभी ने समवेत स्वर में उनका साथ दिया। “आप सभी के जोश से प्रतीत होता है कि आप लोगों को भी षटकुल के प्रति उतना ही क्रोध है जितना मुझे है।” महाराज पुनः कहने लगे “यह बात सत्य है कि युद्ध से राज्य पर अतिरिक्त भार पड़ेगा किंतु अब आर-पार की लड़ाई के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि यदि अभी उन्हें दंडित नहीं किया गया तो एक तो विराटनगर की छवि धूमिल होगी और दूसरा उन का मनोबल इतना बढ़ जाएगा कि उन्हें पराजित कर पाना असंभव हो जाएगा। इस बीज को अंकुरित होने से पहले ही कुचलना होगा। आप लोगों का क्या सुझाव है।” “जो आपका निर्णय है वह हमारा निर्णय है महाराज! हम षटकुल का अस्तित्व मिटा देंगे। महादेव की सौगंध राजा शतादित्य का कटा मस्तक आपके चरणों की शोभा बढ़ाएगा। रूद्रदेव ने खड़े होकर अपना हाथ ऊपर उठाकर मुट्ठी भींचते हुए कहा।” सभी ने मिलकर पुनः महाराज का जय-जयकार किया। “ सेनापति मैं आपको आज्ञा देता हूं की एक माह के भीतर मुझे युद्ध की योजना के साथ सूचित करें अब सभा समाप्त की जाती है" “हर-हर महादेव” “हर-हर शम्भू” Previous< >Next -------------------- आगामी भाग में पढ़ें- क्या रुद्रदेव कोई योजना बना पाएंगे और यदि हाँ तो क्या वो योजना कारगर होगी ? जानने के लिये पढ़ते रहें “महाप्रयाण” आशा है “महाप्रयाण” आपको पसंद आती रही है। कृपया हमसे जुड़े रहें, अपने सुझाव व विचारों से हमें अवगत कराते रहें और पढ़ते रहें। आगामी भाग दिनांक 30.11.2016 को प्रकाशित किया जाएगा। धन्यवाद
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