Previous< >Next
तत्पश्चात सेनापति ने अपनी कमर में खोंसी हुई कटार निकाली और उसे बाएं हाथ में पकड़कर अपनी दाँयी हथेली में चीरा लगा दिया । उनका गाढ़ा रक्त बड़ी कठिनाई से उस चीर से निकला और भूमि पर गिरने लगा। वे अश्व से कूदे और जहां रक्त और मिट्टी मिली थी , उसे उठाकर अपने माथे पर तिलक किया । उन्होंने अपने अश्व पर चढ़कर अपनी तलवार उठा कर रणहुंकार किया, “हर हर महादेव” सारी सेना ने फिर एक साथ प्रतिसाद दिया, “हर हर शंभू” “रणसज्ज” सेनापति ने आदेश दिया। सारे सेनाप्रमुखों ने अपनी-अपनी सेना के सम्मुख पहुंचकर कमान संभाल ली। अभी सूर्योदय नहीं हुआ था , आकाश से वितस्ता का वह श्वेत बालू का मैदान सेना के काले कवचों से पटा हुआ था किंतु उस ऒर का मैदान अंधेरे में भी श्वेत दिखाई दे रहा था । उस ऒर की सेना पूरे मैदान को छोड़कर पीछे खड़ी थी । स्पष्ट उस ओर आकर युद्ध करने का निमंत्रण था । विराटनगर की संपूर्ण सेना वितस्ता के बिल्कुल निकट पहुंचने के लिए आगे चली। लकड़ी के पटियों की खरड़-खरड़ , घोड़ों के तापों और सैनिकों के कदमों की एक लयबद्ध ध्वनि आ रही थी । एक गीत सेना का प्रत्येक सैनिक गा रहा था- है महाप्रयाण है महाप्रयाण हथेलियों में प्राण हथेलियों में प्राण सर्वोपरि आन सर्वोपरि बान राष्ट्र का सम्मान राष्ट्र का सम्मान धरा गगन भी डोलते तुमुल संग बोलते रुधिर में अग्नि घोलते चले हैं धनुष तान है महाप्रयाण शत्रु है अपार क्या मृत्यु का विचार क्या जीवनी का सार क्या मातृभूमि गान है महाप्रयाण तिलक विजय का भाल दो त्रिपुण्ड भी कपाल दो शम्भू महाकाल दो अजेयता वरदान है महाप्रयाण डमक डमक धरा हिले धधक धधक गगन जले मार्ग रोके जल भले धमक धमक ये पग चले शत्रु खंड खंड हो ध्येय एक अखंड हो शक्ति वो भुजदंड हो वार हर प्रचंड हो हृदय में ऐसा ज्वाल हो रक्त विष कराल हो आशीष माँ का भाल हो हो जो अरि काल हो लक्ष्य हो ये अक्ष में कोई हो विपक्ष में पार्श्व में प्रत्यक्ष में बाण धंसे वक्ष में अग्निशिखा धूमती मृत्यु संग झूमती प्राण ज्योति घूमती धरा क्षितिज को चूमती जब तलक ये प्राण हो जननी का सम्मान हो प्रथम पृथक प्राण हो तब महाप्रयाण हो तब महाप्रयाण हो तब महाप्रयाण हो... वायु की लहरें भी गीत के अनुसार डोल रही थीं। सेना वितस्ता के बिल्कुल किनारे आ लगी । नदी के सहारे सर्वप्रथम वे गाड़ीनुमा असंख्य पुल खड़े थे , जिन्हें विशेष रुप से बनवाया गया था , पीछे पूरी सेना उत्तर से दक्षिण को फैली हुई थी । सामने पूर्व दिशा में सूर्यदेव के दर्शनों की प्रतीक्षा थी । कुछ ही पलों में क्षितिज के धुंधलके में से उस तेजराशि की प्रथम रश्मि ने अपना दर्शन दिया । रुद्रदेव ने आंखों से ही नमन किया और अपनी विदारक नामक विशाल तलवार को आकाश में लहराकर हुंकार किया, “हर हर महादेव” उत्तर और दक्षिण में खड़े सेना प्रमुखों ने भी अपनी तलवार उठाकर “हर हर महादेव” का नाद किया। शंख की ध्वनियों ने आकाश गुंजा दिया , रणभेरियाँ बजने लगीं , नगाड़ों की एक अजीब सी ताल बजने लगी , रक्त में ज्वार आने लगा । सामने वाली सेना के भी शंख और नगाड़े सुनाई देने लगे। Previous< >Next --------------- आगामी भाग में पढ़ें- अब हो गया है युद्ध का शंखनाद, क्या होगा परिणाम। जानने के लिये पढ़ते रहें “महाप्रयाण” आपके निरंतर मिलते प्रेम से हम अभिभूत हैं आपके सुझावों की हमें आतुरता से प्रतीक्षा रहती है, इनसे हमें अवश्य अवगत कराते रहें। आगामी भाग दिनांक 04.01.2017 को प्रकाशित किया जाएगा। अधिक अपडेट के लिए फॉर्म अवश्य साइन अप करें। धन्यवाद
0 Comments
|
AuthorA creation of Kalpesh Wagh & Aashish soni Categories
All
|