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महाप्रयाण भाग -29 "गिरोह"

9/4/2017

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उसके बाद रुद्रदेव कभी प्रसेन से मिलने नहीं गए । धीरे-धीरे फिर से उन्होंने राजसभा में आना शुरु कर दिया।

कुछ काल पश्चात एक दिन .........

एक गुप्तचर सूचना लेकर आया , “महाराज का यश अमर रहे । ”

“कहो क्या सूचना है ”

“ उस विद्रोह के कर्ता और नेता के बारे में कुछ सूचना ज्ञात हुई है । ”

“ कैसा विद्रोह, कब और कहां हुआ यह, रुद्रदेव ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी? ”

महाराज के कुछ कहने से पहले कुशाग्र बोल पड़ा और सारी बात से सेनापति को अवगत कराया।

“ मेरे पीछे से यह विद्रोह हुआ और मुझे ज्ञात नहीं आश्चर्य है । ”

गुप्तचर आगे बोला , “ सूचना यह है कि षटकुल के पूर्व राजा शतादित्य का विश्वस्त सेवक धनपाल, जो कि शतादित्य की मृत्यु से लेकर अब तक उसके परिवार और मित्रों की सहायता कर रहा था। उसने उन सभी को मिलाकर दस्युओं का एक गिरोह तैयार कर लिया है । वह लगातार धीरे धीरे अपने और अधिक से अधिक विश्वस्त लोगों को जोड़ता जा रहा है । वे लगातार छोटी-मोटी लूटपाट कर अपने उद्देश्य के लिए धन एकत्रित किया करते थे किंतु अब उनकी संख्या बढ़ने से वे बड़ी डकैतियां भी करने लगे हैं। वे इतनी चतुराई से अपना काम करते हैं कि शासन को उनके काम की भनक तक नहीं लगती । अब तो हमारे सूत्रों से यहां तक ज्ञात हुआ है कि धनपाल ने शतादित्य के पुत्र प्रसेनादित्य को विराटनगर के विरुद्ध युद्ध का नायक बना दिया है और वह विराटनगर से प्रतिशोध लेने के लिए सेना एकत्रित कर रहा है । ”

प्रसेन का नाम सुनते ही रुद्रदेव का ह्रदय जोर से धड़का और आत्मग्लानि से उनका चेहरा पीला पड़ गया ।

“ किंतु सेना कहां से एकत्रित करेंगे और इतना धन भी क्या लूटपाट से प्राप्त होगा ?” कुशाग्र ने पूछा।

गुप्तचर ने उत्तर दिया ,“ उपसेनापति ! षटकुल के विरुद्ध युद्ध में आपके अंतिम आक्रमण के पश्चात , षटकुल की जो सेना तितर-बितर हो गई थी । वे उन्हीं में से अपने योद्धाओं को एकत्रित कर रहे हैं । ऐसा भी सुनने में आया है कि धनपाल पहले षटकुल का कोषाधिकारी था और युद्ध के समय उसने बहुतसा धन व स्वर्ण आभूषण तथा सोने के सिक्के आदि राजकोष से गायब कर दिए थे और केवल बहुत थोड़ा ही कोष दिखावे के लिए रखा था , जिसे हमने युद्ध पश्चात राजसात किया था ।”

“ हम्म ! ये तो बहुत गंभीर मामला है हमें तत्काल उन्हें खोजना होगा और समाप्त करना होगा , अन्यथा वे हमारे लिए बहुत बड़ा संकट खड़ा कर सकते हैं ।
आपका क्या विचार है सेनापति ? ”

सेनापति जैसे किसी निद्रा से जागे हों।

“ वे हड़बड़ाकर बोले, हां हां आप ठीक कहते हैं महाराज! कुशाग्र तुम सेना की एक टुकड़ी लेकर जाओ और आवश्यक कार्यवाही करो । ”

कुशाग्र सेना की टुकड़ी लेकर गया भी और उसने सैनिक कार्यवाही भी की किंतु उसे आंशिक सफलता ही हाथ लगी। धनपाल को वह पकड़ न सका और प्रसेन भी उसके हाथ न लगा।

कुछ समय पश्चात उनके उपद्रव , डकैतियां थम गईं। गिरोह और योजना को समाप्त जानकर कुशाग्र वापस विराटनगर आ गया।


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आगामी भाग में पढ़ें- क्या सचमुच वे डकैतियां थम गई थी? क्या सचमुच प्रसेन और धनपाल का गिरोह समाप्त हो गया था या वे चुपचाप अपनी सेना का गठन कर रहे थे ? क्या विराटनगर के लिए किसी अनिष्ट की सूचना आने वाली थी?
जानने के लिये पढ़ते रहें “महाप्रयाण”

अपने विचारों से अवगत अवश्य कराये।
आगामी भाग दिनांक 16.04.2017 को प्रकाशित किया जाएगा।
नोटिफिकेशन प्राप्त करने के लिए फॉर्म अवश्य साइन अप करें।
धन्यवाद







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