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महाप्रयाण भाग-11 "योजना "

4/12/2016

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                 तीन अश्वों ने नगर के मुख्य द्वार से प्रवेश किया और नगर के मुख्य मार्गों से धूल उड़ाते हुए सीधे राजमहल में प्रवेश कर गए। सबसे आगे सेनापति रुद्रदेव और उनके दांयी व बांयी ओर उनके विश्वस्त सैनिक उदय व चैतन्य अपने अश्वों पर थे।
सेनापति महाराज से मिलने सीधे उनके कक्ष में चले गए थे।
“सेनापति हमें कितनी चिंता हो रही थी आपकी , कम से कम हमें तो सूचित कर जाते । अगर आपको कुछ हो गया तो विराटनगर की सुरक्षा का क्या होगा । वो तो आपके दो विश्वस्त सैनिक भी अनुपस्थित थे, इससे हमने अनुमान लगाया कि आप अवश्य ही युद्ध की तैयारी से संबंधित किसी काम से गए होंगे ” महाराज ने व्यग्रता से पूरी बात की।

“जब तक मैं षटकुल की सीमा को विराटनगर की सीमा में विलय नहीं कर देता, तब तक मुझे कुछ नहीं होगा। हाँ, आपका अनुमान ठीक ही था महाराज! मैं उत्तर में हरितभूमि राज्य गया था, किसी विशेष प्रयोजन से।”

“और वह विशेष प्रयोजन सफल रहा है, यह आप का मुखमंडल ही बता रहा है” महाराज ने बीच में टोका।

“जी महाराज! आप से क्या छुपा है, सब कुछ विराटनगर के अनुकूल ही है” रुद्रदेव ने कूट भाषा में कहा।
“महाराज आपने मुझे एक माह का समय दिया था, युद्ध की योजना बनाने के लिए और अभी मात्र पंद्रह दिन बीते हैं और  आपका ये सेवक युद्ध की योजना के साथ आपके समक्ष उपस्थित है । आप अब राजपुरोहित से कहकर युद्ध की तिथि निश्चित कर दीजिए।”

“हम अभी राजपुरोहित को राजमहल में आमंत्रित कर लेते हैं। वे अपनी गणना अनुसार युद्ध की तिथि निश्चित कर बता देंगे”
महाराज ने अपने सेवक को बुलाकर राजपुरोहित को आमंत्रित करने के लिए भेज दिया।

“सेनापति मुझे युद्ध की विस्तृत योजना बताओ कि तुमने क्या तैयारी की है”

“जो आज्ञा महाराज” सेनापति ने कुछ झुककर हाथ जोड़कर महाराज का अभिवादन किया और झुके रहकर ही एक हाथ से महाराज को एक ओर चलने का संकेत किया।
महाराज और सेनापति योजना कक्ष की ओर बढ़ गए। उस कक्ष में विशाल मेज पर राज्य की वैसी ही प्रतिकृति बनी हुई थी जैसी सेनापति के घर पर थी।
 वहाँ सेनापति ने महाराज कीर्तिवर्धन को अपनी संपूर्ण योजना से अवगत कराया। वे काफी लंबे समय तक वार्तालाप करते रहे और अपनी योजना को अंतिम रूप देने में लगे रहे। महाराज ने सेनापति के चातुर्य और दूरदर्शिता की बहुत सराहना की । एक सैनिक ने राजपुरोहित के आने की सूचना दी, वे दोनों वापस बैठक कक्ष में आ गए जहां राजपुरोहित उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। दोनों ने राजपुरोहित को प्रणाम किया सभी ने अपना-अपना आसन ग्रहण किया।
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आगामी भाग में पढ़ें- कौनसी तिथि निश्चित की राजपुरोहित ने क्या इस तिथि का कोई कूटनीतिक महत्व भी है।
जानने के लिये पढ़ते रहें “महाप्रयाण”

सभी सुहृद पाठकों की ओर से निरन्तर कथा के भाग कुछ बड़े करने का सुझाव दिया जा रहा है। हम आपके आदेशों से बद्ध हैं अतः कथा के आगामी भाग आकार में कुछ बड़े किये जाएंगे । अपने सुझाव व विचारों से ऐसे ही हमें अवगत कराते रहें और पढ़ते रहें। आगामी भाग दिनांक 07.12.2016 को प्रकाशित किया जाएगा।
धन्यवाद
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