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जेएनयु vsरामजस 

23/2/2017

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          पिछले वर्ष जेएनयू में अफजल गुरु की फांसी की बरसी पर हुए प्रदर्शन देश में  सभी के ज़ेहन  में जिंदा हैं  और उनमें लगाए गए नारे "भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी" ,  "अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा है "और आखिर "पाकिस्तान जिंदाबाद " , हम सभी के कानों में आज भी सुनाई देते हैं, उमर खालिद ने उस का नेतृत्व किया था।
     
         कल उसे  रामजस कॉलेज में एक प्रोग्राम के लिए बुलाया गया था , जिसमें अलगाववाद पर उसे बोलना था लेकिन जेएनयू के बाहर और अंदर की दुनिया में बहुत बड़ा फर्क आ गया है जो कल उमर खालिद को अच्छे से महसूस हुआ होगा , जब एबीवीपी के प्रदर्शनकारियों ने यह कार्यक्रम नहीं होने दिया और उसका तीव्र विरोध किया । दोनों पक्षों में जमकर संघर्ष हुआ और पत्थरबाजी भी हुई  लेकिन कितने आश्चर्य की बात है कि एक सप्ताह पहले जो पत्थरबाज कश्मीर में शांतिपूर्वक प्रदर्शनकारी कहे जा रहे थे , वहीं एबीवीपी कार्यकर्ता उग्र,  हिंसक,  बर्बर और न जाने क्या क्या कहे जा रहे हैं। एक सप्ताह में ही हमारे तथाकथित बुद्धिजीवीयो के लिए पत्थरबाजी शांतिपूर्वक से उग्र, हिंसात्मक और बर्बर हो गई।
       
          यही दोहरा रवैया संजय लीला भंसाली और तारिक फतेह के प्रकरणों में भी हुआ था। जब रानी पद्मिनी का गलत चित्रण करने पर राजपूत कार्यकर्ताओ ने संजय लीला भंसाली का विरोध किया  तब राजपूत कार्यकर्ताओं को भी ऐसे ही हिंसक और असहिष्णु करार दिया गया था। इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला बताया था और पूरे देश में फिर से असहिष्णुता पर बात होने लगी थी, वही तारिक फतह  जो की "फतह का फतवा "कार्यक्रम के एंकर है , उनका  विरोध सिर्फ एक खबर बनकर रह गया ।
 
         देश का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग लगातार इस तरह के कार्यों  को बढ़ावा और समर्थन देता आया है ।  वहीं जेनयू जैसे विश्विद्यालय इस तरह की मानसिकता की नर्सरी बने हुए हैं , जहाँ 30 से 35 वर्ष तक की उम्र के विद्यार्थी पढाई कम और देशविरोधी गतिविधियों के लिए ज्यादा जाने जाते हैं । आज मेकाले के वंशज जेनयू जैसी जगहों को अपनी प्रयोशालाये बनाये हुए हैं  और भारतीय संस्कृति पर लगातार हमला करते आये हैं।

         नरेंद्र मोदी की सरकार से पहले कई पूर्ववर्ती सरकारो और ऐसी विचारधारा वाले बुद्धिजीवियों के बीच एक प्रकार से honeymoon period चल रहा था और इन्हें सरकार का पूरा समर्थन प्राप्त था , जो अब संघर्ष में बदल गया है । मोदी सरकार के बाद से इन लोगो द्वारा हर छोटी से छोटी बात पर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया , चाहे वो असहिष्णुता को मुद्दा बनाकर पुरस्कार वापसी हुयी ,  रोहित वेमुला की आत्महत्या को मुद्दा बनाना हो , अख़लाक़ या और किसी कानून व्यवस्था से जुड़े मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देना हो, कांग्रेस और अन्य सभी पार्टियों द्वारा उन्हें पूरा समर्थन दिया गया । अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को देश की सुरक्षा और अखंडता से भी ऊपर मान लिया गया है । इन लोगो को मीडिया के एक बड़े वर्ग का भी समर्थन प्राप्त है जो इनके देशविरोधी कृत्यों का हमेशा बचाव करता आया है जबकि इन लोगो द्वारा लगातार नक्सलियों  और आतंकवादियों का समर्थन किया जाता रहा है।
 देश  के सामने ऐसे लोगो की सच्चाई आना जरूरी है और ऐसे लोगो का समर्थन करना देश की एकता और अखंडता से समझौता करना है , देश को ये समझना होगा।
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