fiction hindi
  • रचनाओं की सूची
  • Blog
  • महाप्रयाण
  • Contact Us
  • Disclaimer
  • Privacy Policy
  • रचनाओं की सूची
  • Blog
  • महाप्रयाण
  • Contact Us
  • Disclaimer
  • Privacy Policy

स्वधर्म

26/2/2016

5 Comments

 
स्वधर्म का ना मान किया ,
निज परम्परा का पालन ही
धर्म के रथ पर होता था
अपने घर का संचालन ही

मूर्ति से आस्था डोल गयी
शास्त्रों पर से विश्वास गया
पत्थर वो बना कागज़ ये हुआ
मन से ईश्वर का वास गया

पश्चिम की ओर चले भागे
संस्कारों के टूटे धागे
उनको भी तो न पकड़ सके
हम पीछे वो आगे आगे

सब तिलक जनेऊ छूट गए
बस भाग्य तभी से फ़ूट गए
फिर मांस सुरा के सेवन से
लगता ईश्वर भी रूठ गए

न माया मिली न राम मिला
न प्रसिद्धि न ही काम मिला
जो गाँठ का था वो भी रीता
सब खो कर ये अंजाम मिला

अब मर्म की बात बताती है
अरे ये पुरखों की थाती है
ये जन्मान्तर से संचित है
कवि वाणी ये समझाती

ये राम कृष्ण की भूमि है
ये धर्म ही सत्य सनातन है
लाखों वर्षों में जो न डिगा
अरे कुछ तो इसका कारण है

ये भक्तिसुधा से सिंचित है
ये प्रेमसुधा से रसमय है
ये मर्यादा से रक्षित है
ये राष्ट्रशक्ति से बलमय है

अब धर्म वृक्ष परिपालन हो
अब समय है इसके सिंचन का
रत हो अभिमान के वर्धन का
युत हो कर्त्तव्य अकिंचन का

नभ् मंत्रो से उच्चारित हो
वाणी गुणगान से भारित हो
अपना सबसे श्रेयस्कर है
सारे जग में ये प्रसारित हो

अपना सर्वस्व धर्म को दें
फिर इस से हम कुछ ले पाएं
हम विश्व में एक उदहारण हों
कोई ना फिर ये कह पाये

की स्वधर्म का ना मान किया
निज परंपरा का पालन ही
धर्म के रथ पर होता था
अपने घर का संचालन ही
5 Comments
पौरुष
27/2/2016 11:44:38 am

काफी अच्छा लिखा है !!

Reply
fictionhindi
27/2/2016 11:46:02 am

बहुत धन्यवाद

Reply
Prachi wagh
29/2/2016 08:48:53 am

Nicely written keep it up

Reply
fictionhindi
29/2/2016 09:24:20 am

Thanks

Reply
डा श्याम गुप्त link
29/2/2016 09:38:15 am


अब धर्म वृक्ष परिपालन हो
अब समय है इसके सिंचन का ----सच सच कथ्य ....सुन्दर

Reply



Leave a Reply.

    Author

    A creation of Kalpesh Wagh & Aashish soni

    RSS Feed

    Archives

    March 2017
    February 2017
    October 2016
    July 2016
    June 2016
    March 2016
    February 2016
    January 2016
    December 2015
    November 2015
    October 2015
    September 2015
    August 2015
    July 2015

    Categories

    All
    Story
    कविता
    दिव्य स्फुरण ( DIVYA SPHURAN )
    पुनर्चेतना
    पुनर्चेतना
    शब्दांग

      sign up for notifications

    Submit
Powered by Create your own unique website with customizable templates.