हम जाने अनजाने अपनी अमूल्य इच्छाशक्ति का उपयोग ऐसी जगहों पर करने लगते है जहां वास्तव में इसकी आवश्यकता नहीं रहती,बल्कि इसका विपरीत प्रभाव भी होता है। खास तौर पर अपनी किसी आदत से छुटकारा पाने की कोशिश में।कई बार हम अपनी आदतो को छोड़ने के असीमित प्रयासों के बावजूद असफल हो जाते है।इसका कारण होता है कि हम इच्छाशक्ति का उपयोग करने लगते हैँ,बार बार संघर्ष करते हैं।ऐसा करते हुए हम उस विशिष्ट आदत के अस्तित्व को 'सत्ता' देने लगते है और आख़िरकार वो आदत हम पर 'राज' करने लगती है। एक फ़िल्मी गीत है शायद आपने सुना हो-"तेरा ज़िक्र है या इत्र है, जब जब करता हूँ...महकता हूँ" हम उसी आदत का चिंतन करने लगते है,उस से संघर्ष करने लगते है,उसका 'ज़िक्र' करने लगते है और अंततः उसी से हर बार हार जाते है। समाधान यह है कि किसी आदत को छोड़ने का सबसे सहज उपाय है-उदासीनता,विरक्ति।इन दोनों शब्दों के प्रति एक आम धारणा है कि ये शब्द बहुत बड़े और व्यवहारिक जीवन में लगभग असंभव से लगने वाले शब्द है।जबकि वास्तविकता में यही उदासीनता और विरक्ति सबसे सहज है। कल्पना कीजिये उस समय की जब आप उस विशिष्ट 'आदत' से ग्रसित नहीं थे..आपका बचपन।कितना सहज।क्या उस समय आपने कोई संघर्ष किया था किसी आदत से दूर रहने के लिए?आप सहज ही विरक्त थे इसी लिये पीड़ित नहीं थे। रही बात उदासीनता की तो इस शब्द को सामान्यतः (अकर्मण्यता जैसा समानार्थी) नकारात्मक माना जाता है जबकि वास्तव में यह 'उत् + आसीन' से बना है जिसका मतलब है -ऊपर हो जाना। जो की हम किसी भी आदत से वास्तव में हैं।इस पर शांत भाव से चिंतन करने पर हम पायेंगे कि हम वास्तव में किसी आदत के शिकार है ही नहीं।यह अनुभूति हो जाने पर आपकी आदत बहुत पीछे छूट गयी आपको खुद महसूस होगी।आप वास्तव में उसे छोड़ भी चुके होंगे। इच्छाशक्ति का उपयोग किसी अच्छी आदत को डालने में किया जाये तो ही इस ईश्वरीय वरदान (इच्छाशक्ति) की सार्थकता है। लेखक - अभिषेक व्यास लेखक शास्त्रीय संगीत में स्पेनिश गिटार वादक हैं तथा प्रसार भारती से बी हाई ग्रेड प्राप्त कलाकार हैं ।
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March 2017
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