सुबह
मैं चंद खामोश किरणों का, सुनहरा सा उजाला हूँ मुझे कुछ देर तक लेना, फिर कामों में खो जाना दोपहर मैं चंद खामोश लोगो की, बियाबाँ सी दोपहरी हूँ मुझमें कुछ देर थक लेना , फिर सांझों में खो जाना रात मैं चंद खामोश लब्ज़ों की, उनींदी सी कहानी हूँ मुझे कुछ देर पढ़ लेना, फिर ख्वाबों में खो जाना...
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AuthorA creation of Kalpesh Wagh & Aashish soni Archives
March 2017
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