"अपनी कार” वे भावुक हुए बिना ना रह सके I वे बार-बार अपनी कार की चाबी को निहार रहे थे फिर उन्होंने कार पर प्यार से हाथ फेरा क्या-क्या नहीं सहना पड़ा उन्हें इस दिन के लिए I अनायास उन का ध्यान पिछवाड़े की टीस पर चला गया I लेकिन कार की गद्देदार सीट पर बैठते ही सारा दर्द काफूर हो गया I कुछ समय बाद उनकी कार मुंबई की सड़कों पर दौड़ रही थी और माड़साब वापस अपने शहर की ओर लौट चले थे I बाबूलाल अच्छी ड्राइविंग कर रहा था, माड़साब अगली सीट पर सिर टिकाये आँखें मूंदे बैठे थे I A.C. की हवा उन्हें हिमालय से आती प्रतीत हो रही थी, मस्तिष्क में एक सात्विक शांति थी I जो चाहा वो पा लेने का गर्व था I हल्की शाम ढल रही थी तभी बाबूलाल ने माड़साब की तंद्रा तोड़ी, “अगर बुरा न मानो तो एक बात कहूँ माड़साब”
“हाँ बोल भाई क्या बात है” माड़साब ने अपनी सीट पर सीधे होते हुए कहा I “वो जो कल आपने अंग्रेजी मंगाई थी वो आधी बची हुई है , अगर आप कहें तो एक गुलाबी-गुलाबी हो जाए” “ नहीं-नहीं भाई अभी तुझे रात भर गाड़ी चलानी है, बहुत रिस्की है I” “ इसीलिए तो कह रहा हूँ माड़साब जहाँ रिस्की है वहीं तो व्हिस्की है और हल्का हल्का लेने से ध्यान बना रहता है” उसने बात इस अंदाज से कही की माड़साब हँस पड़े I “चल ठीक है, लेकिन सिर्फ एक पेग” बाबूलाल ने थोड़ी आगे जाकर साइड में गाड़ी रोक दी दोनों ने एक-एक पैग लिया फिर बाबूलाल के बहुत आग्रह पर एक-एक और लिया I बाबूलाल बोतल को डिक्की में रखने के बहाने कार से बाहर उतरा और पीछे आकर देर सारी नीट गटका गया I फिर वापस आकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया I लगभग एक घंटे ड्राइविंग के बाद उसने नासिक से पहले खाना खाने के लिए रोड के साइड में बने एक ढाबे पर गाड़ी रोकी I गाड़ी उसने कुछ इस तरह से खड़ी की थी कि उसका मुंह ढाबे की ओर था और पिछला भाग रोड की ओर I वे दोनों कार से उतरकर ढाबे पर आ गए , उनका मुंह ढाबे की ओर था, वे ढाबे वाले से बात कर ही रहे थे कि एक जोरदार धड़ाम की आवाज आई I दोनों ने पीछे पलट कर देखा तो दिखाई दिया कि उनकी कार , पिछले हिस्से पर ट्रक की टक्कर से एक चक्कर गोल घूम रही थी और रोड से परे ढाबे की ओर आकर रुक गई थी I दरअसल बाबूलाल ने कार का हैंड ब्रेक नहीं लगाया था , इसीलिए वह गुडकती हुई रोड पर चली गई थी और ट्रक ने उसके पिछले हिस्से को टक्कर मार दी थीI ट्रकवाला न रुका ना उसने पीछे पलटकर गाड़ी को देखा, इस दर से की कहीं गाड़ी में बैठी सवारी को कुछ हो न गया होI वह ट्रक और तेज भगाकर ले गयाI माड़साब पागलों की तरह दौड़ते हुए कार के पास पहुंचेI कार की हालत देखकर उनके आंसू निकल आए, कार के पीछे का पूरा हिस्सा डेमेज हो चुका थाI माड़साब अपना आपा खोकर बाबूलाल को मारने दौड़े, “कमीने तूने हैंड ब्रेक क्यों नहीं लगाया” “मुझे क्या पता कि इसमें हैंड ब्रेक भी होता है हमने ट्रैक्टर में तो कभी नहीं लगाया” बाबूलाल ने ना पचने लायक झूठ बोला I ढाबेवाला व और लोग भी वहाँ इकट्ठे हो गए थे, लोगों ने उनके बीच बीच-बचाव किया , “भाई साहब इसकी क्या गलती है ऐसा नौसीखिया ड्राइवर आप लेकर आए तो गलती आपकी है” “बाबूलाल इसका सारा खर्चा तुझे देना होगा गलती तेरी है” “माड़साब मैँ आपके घर नहीं आया था कि मुझे कार लेने ले चलो , आपकी गरज थी तो आपने मुझे बुलाया था I” उसके बाद काफी देर तक दोनों एक दूसरे की माँ -बहन को याद करते रहे, अंत में बाबूलाल ने कह दिया कि “ठीक है अब मैं बस से चला जाता हूँ आपकी गाड़ी आप ही ले आना, " माड़साब एकदम घबराए फिर स्वर बदलकर बोले "यार पूरे सफर में मैंने तुझे छोटे भाई जैसा रखा और तूने लास्ट में इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी I खैर अब क्या हो सकता है नासिक चलते हैं वहीं इसे सुधरवायेंगे I” माड़साब जानते थे कि वह रोज मजदूरी कर पैसे कमाता है इस गाड़ी को ठीक करवाने के पैसे कहाँ से देगा, इसीलिए तो अच्छे खाने पीने के नाम से मुंबई चलने को राजी हो गया था वरना कोई पैसे वाला क्यों जाएगा इतने से खर्चे में I इसलिए इससे गाड़ी चलवा ली जाए यही फायदे का सौदा है I बाबूलाल को अन्य लोगों की मदद से समझा बुझाकर वे नासिक शोरुम पर ले आये I रास्ते में बाबूलाल ने उनसे कहा कि हमें थाने में fir कर देनी चाहिए I लेकिन थाने के नाम से माड़साब को लॉकअप याद आ गया , कहीं लेने के देने न पड़ जाए इसलिए उन्होंने पुलिस का नाम ही छोड़ दिया I शोरुम वाले ने तीन चार घंटे का समय मांगा और गाड़ी ठीक करने में जुट गया I इतने समय में माड़साब ने घर पर बात की और बताया कि वे सकुशल सुबह तक घर पहुंच जाएंगे I कार ठीक होने पर वह वापस शोरुम पर पहुंचे , शोरुम वाले ने उन्हें कार का रिपेयरिंग बिल थमा दिया I बिल देखते ही बाबूलाल का हलक सूख गया फिर उसने बिल माड़साब को दिया तो उन्हें हार्ट अटैक ही आ गया पूरे पैतालीस हजार आठ सौ पच्चीस रुपए का बिल था I माड़साब और बाबूलाल दोनों एक दूसरे का मुंह देख रहे थे, “इतना बिल कैसे हो गया भाई, ठीक से चार्ज लगाओ” “ यह इसी कंपनी का ही शोरुम है साहब कोई ऐरा गैरा मैकेनिक शॉप थोड़ी है, सब ओरिजिनल रेट हैं” अब कुछ नहीं हो सकता था , बिल बन गया था तो देना ही था और वैसे भी गाड़ी को ऐसे तो घर ले जा नहीं सकते थे उसे ठीक करवाना भी जरुरी था I माड़साब को इन्शुरन्स वाले बीस हज़ार रूपए याद आ गए , काश वो दे दिए होते तो अभी कुछ फायदा हो गया होता I लेकिन उन्हें क्या पता था की इतनी जल्दी गाडी ठुक जायेगी और पैतालीस हज़ार का बिल बनेगा I माड़साब को गुस्सा बहुत आ रहा था, वे atm पर पैसे लेने पहुंचे, वहाँ से बाहर निकलते हुए गेट को गुस्से से जोरदार धक्का दे दिया I “ओ साब, ज्यादा गुस्सा है तो घर बीवी को जाकर मारो यह बैंक प्रॉपर्टी है दरबान चिल्लाया I” माड़साब मुंह बनाते हुए आ गए , पैसे दिए और वहाँ से भी विदा हुए I बाबूलाल को हाथ जोड़ते हुए बोले , “अब ठीक से घर पहुंचा दे मेरे बाप, अब अगर कुछ हुआ तो मैँ झेल नहीं पाऊंगा और हाँ दारु का विचार भी दिमाग में मत लाना I” बाबूलाल हंसता हुआ गाड़ी चला रहा थाI आखिरकार सब से निपटकर माड़साब कार लेकर घर के दरवाजे पर सकुशल पहुँच गए I घर पहुंचते ही उन्होंने राहत की सांस ली, बीवी-बच्चे कार को देखने के लिए गेट पर ही खड़े थे I मगर कार का हुलिया देखते ही उनकी खुशी हवा हो गई I गाड़ी का कुछ जगह से कलर उतरा हुआ था , कुछ हल्के-हल्के डेंट भी दिखाई दे रहे थे । जैसे ही माड़साब घर के बाहर गाड़ी से उतरे , उन्हें उनके जैसी ही एक और कार खड़ी दिखाई दी। फर्क बस इतना था कि वह लाल रंग की थी उसमेँ से माड़साब के साढू भाई उतरे , उन्होने माड़साब को देखते ही कहा "अरे क्या बात है शैलेश जी ,आपने भी कार ले ली" माड़साब ने फीकी सी मुस्कान के साथ हामी भरी । "मैंने भी यही मॉडल लिया है 2013 का मॉडल है, अपने एक मिलने वाले ने सौदा कराया , डेढ़ लाख में पड़ी आपकी कितने में पड़ी ?" इस प्रश्न ने माड़साब को ऊपर से नीचे तक पूरा परेशानी में डाल दिया, उन्हें एक-एक कर अस्पताल, थाना ,शोरुम ,होटल, एक्सीडेंट सब घटनायें याद आ गई । उन्होंने हिसाब लगाना शुरु किया पांच ऐसी ट्रेन के , दस हॉस्पिटल के , पचास थाने के, बीस शोरुम के ,पचास रिपेयरिंग के ,पांच पेट्रोल के और कुछ पांच एक हज़ार अन्य खर्च के और अभी बीस हज़ार का इंश्योरेंस बाकी है, अतः "लगभग एक लाख साठ के आस पास पड़ी" माड़साब के मुंह से अनायास निकल गया। वे जवाब का इंतजार ही कर रहे थे "अरे यार महंगी ले ली मुझसे कह देते मैँ सस्ती दिलवा देता और गाड़ी की कंडीशन देख कर लग रहा है यह मेरे वाली से भी पुराना मॉडल है खैर अब ले ली तो ले ली।" उनकी बात सुन कर माड़साब चक्कर खाकर कार के बोनट पर ही बेहोश होकर गिर गए। समाप्त
0 Comments
Leave a Reply. |
AuthorA creation of Kalpesh Wagh & Aashish soni Archives
March 2017
Categories
All
|